चौरी चौरा घटना, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पल है। इस घटना ने सत्याग्रह की नयी दिशा स्थापित की और गांधीजी के सत्याग्रह की भूमिका को मजबूत किया। ‘chauri chura ghatna’
घटना का विवरण:
5 फरवरी 1922 को, चौरी चौरा गांव में एक समूह गांधीजी के संगी सत्याग्रहियों ने एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया। एक अंग्रेजी पुलिसकर्मी की हत्या के बाद, गांधीजी ने सत्याग्रह को रोकने का आदेश दिया, जो उनके विचारों में अहिंसा के खिलाफ था।
प्रभाव:
चौरी चौरा घटना ने गांधीजी को सत्याग्रह की महत्वपूर्णता और अहिंसा के प्रमुखता को पुनः समझाया। इसने स्वतंत्रता संग्राम को एक नया उच्च स्तर पर ले जाने में मदद की और भारतीय जनता की सहमति को जीता। chauri chura ghatna
इतिहासी परिणाम:
चौरी चौरा घटना ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और गांधीजी के नेतृत्व में एक समृद्ध अहिंसा आंदोलन की शुरुआत की। यह घटना भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाई।
चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और अधिकांश को बचा ले जाना उनकी एक बड़ी सफलता थी। इनमें से 151 लोग फांसी की सजा से बच गये। बाकी 19 लोगों को 2 से 11 जुलाई, 1923 के दौरान फांसी दे दी गई। इस घटना में 14 लोगों को आजीवन कैद और 19 लोगों को आठ वर्ष सश्रम कारावास की सजा हुई।
संदेश और सीख:
चौरी चौरा घटना से हमें अहिंसा की महत्वपूर्णता और सत्याग्रह के ताकत का अनुभव मिलता है। यह हमें यह शिक्षा देती है कि समस्याओं का समाधान हिंसा से नहीं, बल्कि अहिंसा और सत्य के माध्यम से होता है। “chauri chura ghatna”
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